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Showing posts from January, 2021

जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊँची नहीं हो सकती

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  By Ravish Kumar मनदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूँ। हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा। कानपुर के अमित सिंह पर मामला दर्ज हुआ है। राजदीप सरदेसाई और सिद्धार्थ वरदराजन पर मामला दर्ज हुआ है। क्या भारत में प्रेस की आज़ादी बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी ? आज मैंने ट्विटर पर ट्विट  किया है। अगस्त 2015 के बाद आज पहली बार ट्विट किया है। वही पत्र यहाँ डाल रहा हूँ । जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊँची नहीं हो सकती हैं। जो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाना चाहते है वो देश को जेल में बदलना चाहते हैं । डियर जेलर साहब,  भारत का इतिहास इन काले दिनों की अमानत आपको सौंप रहा है। आज़ाद आवाज़ों और सवाल करने वाले पत्रकारों को रात में ‘उनकी’ पुलिस उठा ले जाती है। दूर दराज़ के इलाक़ों में FIR कर देती है। इन आवाज़ों को सँभाल कर रखिएगा। अपने बच्चों को व्हाट्स एप चैट में बताइयेगा कि सवाल करने वाला उनकी जेल में रखा गया है। बुरा लग रहा है लेकिन मेरी नौकरी है।जेल भिजवाने वाला कौन है, उसका नाम आपके बच्चे खुद गूगल सर्च कर लेंगे।जो आपके बड़े अफ़सर हैं,IAS और IPS,अपने बच्चों से नज़रें चुर...

क्‍या सारे किसानों के हित और मांगें एक हैं?

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By Abhinav Sinha ......................................................................... किसान कौन है? यह सबसे पहला बुनियादी सवाल है। जब हमारे देश में सामन् ‍ ती जागीरदारी की व् ‍ यवस् ‍ था हावी थी, तब हर प्रकार और हर आकार के किसान का एक साझा दुश् ‍ मन था। खेतिहर मज़दूरों व बंधुआ मज़दूरों का भी वही साझा दुश् ‍ मन था। यह दुश् ‍ मन था सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार। सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार कौन होता है? सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार वह ज़मीन् ‍ दार होता है, जो कि आम किसान आबादी से लगान वसूल करता है, गांव में उसके पास सरकार जैसी शक्ति होती है, वह सिर्फ आर्थिक तौर पर नहीं लूटता, बल्कि उसकी आर्थिक लूट टिकी ही उसके राजनीतिक दबदबे और चौधराहट, यानी आर्थिकेतर उत् ‍ पीड़न पर होती है। वह अपनी ऐय्याशी और ऐशो-आराम के मुताबिक कितना भी लगान वसूलता था। वह अपनी ज़मीन पर बाज़ार के लिए और मुनाफे के लिए खेती नहीं करवाता था, बल्कि वह पूरी तरह से किसानों से वसूले जाने वाले लगान पर निर्भर करता था। यह सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार धनी किसान, मंझोले किसान, ग़रीब किसान व काश् ‍ तकार, और खेतिहर मज़दूर सबको लूटता और दबाता था और इन...

किसी आन्‍दोलन का वर्ग-चरित्र कैसे निर्धारित होता है?

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By Abhinav Sinha ________________________________________________ मौजूदा धनी किसान-कुलक आन् ‍ दोलन का समर्थन करने वाले कई कम् ‍ युनिस् ‍ ट संगठन एक तर्क यह दे रहे हैं कि चूंकि इस आन् ‍ दोलन में ग़रीब और मंझोले किसानों की एक तादाद भी आ रही है, इसलिए यह ग़रीब और मंझोले किसानों का भी आन् ‍ दोलन है। यह तर्क ग़लत है। क् ‍ यों? किसी आन् ‍ दोलन का चरित्र उसमें आने वाली भीड़ से तय नहीं होता है। जो यह नहीं समझता वह राजनीति और विचारधारा की भूमिका भूल चुका है और भोण् ‍ डी भौतिकवादी बात कर रहा है, जो उसी को सच मानता है जो दिखता है। लेकिन जैसा कि मार्क् ‍ स ने कहा था, अगर जो दिखता है वही सच होता तो विज्ञान की कोई ज़रूरत नहीं होती। फिर सवाल यह उठता है कि किसी आन् ‍ दोलन का वर्ग चरित्र तय कैसे होता है? किसी आन् ‍ दोलन का वर्ग चरित्र सबसे पहले उसकी मांगों के चार्टर से तय होता है, जिसका अध् ‍ ययन आपको यह बताता है कि वह किन वर्ग हितों की नुमाइन् ‍ दगी कर रहा है, उसकी राजनीति क् ‍ या है, उसके नेतृत् ‍ व का चरित्र क् ‍ या है और उसकी विचारधारा क् ‍ या है। आन् ‍ दोलन में कौन-कौन से वर्गों के जनसमुदाय नुमाइ...