क्या तालिबान बदल गया है?
By Anand Singh
तालिबान द्वारा काबुल की सत्ता पर क़ब्ज़ा करने से पहले और उसके बाद अब तक उसके प्रवक्ताओं के जितने बयान सामने आये हैं वे तालिबान के पिछले शासन की छवि से कुछ अलग प्रतीत होते हैं। तालिबान अन्तरराष्ट्रीय मीडिया में अपनी छवि को लेकर पहले से कहीं ज़्यादा सचेत है। इस वजह से कई लोग यह कह रहे हैं कि यह पहले जैसा तालिबान नहीं है। अफ़ग़ानी औरतों को घुटनभरी अँधेरी दुनिया में धकेलने वाले, उनपर कोड़े बरसाने वाले,सरेआम फाँसी देने वाले, लोगों के हाथ काटने वाले, बामियान में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ने वाले बर्बरों का क्या वाक़ई हृदय परिवर्तन हो गया है?
तालिबान के अब तक के रवैये और बयानों से इतना तो स्पष्ट है कि उसने अपने पिछले कार्यकाल से कुछ सबक़ लिये हैं। उसे यह समझ आ रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान जैसे वैविध्यशाली देश की सत्ता पर लम्बे समय तक क़ायम रहने के लिए केवल आतंक पर्याप्त नहीं है। सत्ता में लम्बे समय तक बने रहने के लिए पश्तून के अलावा उज़बेक, ताजिक,बलूच, हजारा जैसे अन्य समुदायों के नेताओं को किसी ने किसी रूप में एक हद तक सत्ता में भागीदारी देनी होगी।
इसके अलावा सत्ता चलाने के लिए उसे नौकरशाही और विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवर लोगों की ज़रूरत पड़ेगी जिनसे केवल आतंक के बूते लम्बे समय तक काम नहीं कराया जा सकता है। साथ ही उसे यह भी समझ आ रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था को सुचारुढंग से चलाने के लिए उसे विदेशी मदद की ज़रूरत पड़ेगी। यही वजह है तालिबान अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहा है और इसीलिए उसने तमाम देशों के साथ सत्ता में आने से पहले से ही बातचीत शुरू कर दी थी। इस रूप में यह बेशक एक बदलाव है।
लेकिन सबसे अहम चीज़ जो नहीं बदली है वह है तालिबान की विचारधारा। अपने सभी बयानों में तालिबान के प्रवक्ता तालिबान की उदार छवि दिखाने की कोशिश करते हैं कि वह मानवाधिकारों का सम्मान करेगा, महिलाओं को काम करने की और पढ़ने की अनुमति होगी, लेकिन उसके बाद वे यह जोड़ना नहीं भूलते कि यह सबकुछ इस्लामी क़ानून शरिया के दायरे में होगा।
आज की प्रेस कांफ्रेंस में भी तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने ज़ोर देकर कहा कि वे तालिबान में एक मजबूत इस्लामी अमीरात क़ायम करेंगे और क़ानूनों का सख़्ती से पालन किया जाएगा। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह सख़्ती किस रूप में आएगी। क्या लोगों पर कोड़े बरसाना,सरेआम फाँसी देना, लोगों के हाथ काटना इस सख़्ती में शामिल होगा? क्या महिलाओं को बिना हिजाब के घर से बाहर निकलने की आज़ादी होगी? क्या उन्हें सभी क्षेत्रों में काम करने की आज़ादी होगी? क्या कलाकारों, लेखकों, संगीतकारों और आम लोगों को अभिव्यक्ति की आज़ादी होगी?
इन सवालों पर तालिबान ने अभी तक गोल-मोल जवाब ही दिये हैं। आने वाले कुछ दिनों में तस्वीर थोड़ी और स्पष्ट होगी। जो भी हो इतना तो तय है कि अफ़ग़ानी लोगों को अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए नये सिरे से प्रतिरोध खड़ा करना होगा।

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