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क्‍या तालिबान बदल गया है?

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By Anand Singh तालिबान द्वारा काबुल की सत् ‍ ता पर क़ब् ‍ ज़ा करने से पहले और उसके बाद अब तक उसके प्रवक् ‍ ताओं के जितने बयान सामने आये हैं वे तालिबान के पिछले शासन की छवि से कुछ अलग प्रतीत होते हैं। तालिबान अन् ‍ तरराष् ‍ ट्रीय मीडिया में अपनी छवि को लेकर पहले से कहीं ज् ‍ ़यादा सचेत है। इस वजह से कई लोग यह कह रहे हैं कि यह पहले जैसा तालिबान नहीं है। अफ़ग़ानी औरतों को घुटनभरी अँधेरी दुनिया में धकेलने वाले, उनपर कोड़े बरसाने वाले,सरेआम फाँसी देने वाले, लोगों के हाथ काटने वाले, बामियान में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ने वाले बर्बरों का क् ‍ या वाक़ई हृदय परिवर्तन हो गया है? तालिबान के अब तक के रवैये और बयानों से इतना तो स् ‍ पष् ‍ ट है कि उसने अपने पिछले कार्यकाल से कुछ सबक़ लिये हैं। उसे यह समझ आ रहा है कि अफ़ग़ानिस् ‍ तान जैसे वैविध् ‍ यशाली देश की सत् ‍ ता पर लम् ‍ बे समय तक क़ायम रहने के लिए केवल आतंक पर्याप् ‍ त नहीं है। सत् ‍ ता में लम् ‍ बे समय तक बने रहने के लिए पश् ‍ तून के अलावा उज़बेक, ताजिक,बलूच, हजारा जैसे अन् ‍ य समुदायों के नेताओं को किसी ने किसी रूप में एक हद तक सत् ‍ ता में ...

तमाम तिलचट्टे, छछूंदर, छिपकली और चूहे बदहवास क्यों भाग रहे हैं इधर-उधर?

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 तमाम तिलचट्टे, छछूंदर, छिपकली और चूहे बदहवास क्यों भाग रहे हैं इधर-उधर? By Kavita Krishnapallavi कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी का मालिक अदार पूनावाला लंदन भाग गया । वह कह रहा है कि भारत में उसकी जान को ख़तरा था । अब वह यूरोप में ही वैक्सीन बनाने की बात कर रहा है । पूनावाला को सरकार ने वैक्सीन बनाने के लिए सारे सरकारी नियमों में ढील देकर 3000 करोड़ रुपए का अनुदान दिया था और कहा था कि यह वैक्सीन जनता को मुफ़्त दी जाएगी । अब पूनावाला इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को 400 रुपए और निजी अस्पतालों को 600 रुपए में बेच रहा था । अब वह भाग गया और सरकारी खजाने के तीस अरब रुपए पचा गया । दरअसल यह वैक्सीन घोटाला और कोरोना-प्रबंधन घोटाला (पी एम केयर फंड, वेंटिलेटर और जीवन रक्षक दवाओं और आक्सीजन आदि के इंतजाम और कालाबाजारी सहित) भी रफाएल जैसा ही एक एक भयंकर घोटाला है, एक नरसंहारी घोटाला है । इंतज़ार कीजिए, कहीं एक दिन सरकार से 1500 करोड़ का अनुदान देने वाला, कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक का मालिक भी रफूचक्कर न हो जाए !  अबतक मोदी शासनकाल में सरकारी बैंकों के खरबों-खरब रुप...

अपने बचपन से लेकर ताउम्र फैक्ट्रियों की अँधेरी कोठरियों में घुट-घुट के रहने वाले लोगों की जीवन स्थिति का मर्मिक चित्रण

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By Raj Berwal Social Activist, New Delhi वैसे तो मौजूदा दौर में बेरोज़गारी के चलते पढ़े-लिखे नौजवानों के भी हालात बहुत ख़राब हैं। लेकिन जो युवा मज़दूर गरीब परिवारों से सम्बंध रखते हैं, उनको तो अपनी युवा अवस्था में स्कूल की बजाय ज़्यादातर फैक्ट्रियों का ही मुँह देखना पड़ता है। और अपने बचपन से लेकर ताउम्र फैक्ट्रियों की अँधेरी कोठरियों में घुट-घुट के ज़िन्दा रहना पड़ता है। भला ऐसी दर्दनाक ज़िंदगी का क़िस्सा ये युवा किसको सुनाए, किसके सामने अपने दुःख-दर्द बयान करे। वैसे तो आज के इस बेरहम समाज में जब कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं है उसमें भला इन जैसों की दास्तान कौन सुने।  कुछ दिनों पहले दिल्ली के शाहबाद डेयरी इलाक़े में अभियान के दौरान एक नौजवान से बात हुई। जिसकी उम्र लगभग 17 या 18 साल होगी। वैसे तो उसके चेहरे की उदासी ही बहुत कुछ बता रही थी लेकिन बाद में उसकी बातों में एक उम्मीद नज़र आई जो समाज बदलने ही चाहत रखने वाले में ही नहीं बल्कि हर उस मज़दूर में नज़र आनी चाहिए जिसको फैक्ट्रियों में काम करते-करते न दिन और न रात का पता चलता हो। उसने बताया कि वह फ़िलहाल तो बेलदारी का काम करता ह...

जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊँची नहीं हो सकती

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  By Ravish Kumar मनदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूँ। हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा। कानपुर के अमित सिंह पर मामला दर्ज हुआ है। राजदीप सरदेसाई और सिद्धार्थ वरदराजन पर मामला दर्ज हुआ है। क्या भारत में प्रेस की आज़ादी बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी ? आज मैंने ट्विटर पर ट्विट  किया है। अगस्त 2015 के बाद आज पहली बार ट्विट किया है। वही पत्र यहाँ डाल रहा हूँ । जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊँची नहीं हो सकती हैं। जो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाना चाहते है वो देश को जेल में बदलना चाहते हैं । डियर जेलर साहब,  भारत का इतिहास इन काले दिनों की अमानत आपको सौंप रहा है। आज़ाद आवाज़ों और सवाल करने वाले पत्रकारों को रात में ‘उनकी’ पुलिस उठा ले जाती है। दूर दराज़ के इलाक़ों में FIR कर देती है। इन आवाज़ों को सँभाल कर रखिएगा। अपने बच्चों को व्हाट्स एप चैट में बताइयेगा कि सवाल करने वाला उनकी जेल में रखा गया है। बुरा लग रहा है लेकिन मेरी नौकरी है।जेल भिजवाने वाला कौन है, उसका नाम आपके बच्चे खुद गूगल सर्च कर लेंगे।जो आपके बड़े अफ़सर हैं,IAS और IPS,अपने बच्चों से नज़रें चुर...

क्‍या सारे किसानों के हित और मांगें एक हैं?

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By Abhinav Sinha ......................................................................... किसान कौन है? यह सबसे पहला बुनियादी सवाल है। जब हमारे देश में सामन् ‍ ती जागीरदारी की व् ‍ यवस् ‍ था हावी थी, तब हर प्रकार और हर आकार के किसान का एक साझा दुश् ‍ मन था। खेतिहर मज़दूरों व बंधुआ मज़दूरों का भी वही साझा दुश् ‍ मन था। यह दुश् ‍ मन था सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार। सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार कौन होता है? सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार वह ज़मीन् ‍ दार होता है, जो कि आम किसान आबादी से लगान वसूल करता है, गांव में उसके पास सरकार जैसी शक्ति होती है, वह सिर्फ आर्थिक तौर पर नहीं लूटता, बल्कि उसकी आर्थिक लूट टिकी ही उसके राजनीतिक दबदबे और चौधराहट, यानी आर्थिकेतर उत् ‍ पीड़न पर होती है। वह अपनी ऐय्याशी और ऐशो-आराम के मुताबिक कितना भी लगान वसूलता था। वह अपनी ज़मीन पर बाज़ार के लिए और मुनाफे के लिए खेती नहीं करवाता था, बल्कि वह पूरी तरह से किसानों से वसूले जाने वाले लगान पर निर्भर करता था। यह सामन् ‍ ती ज़मीन् ‍ दार धनी किसान, मंझोले किसान, ग़रीब किसान व काश् ‍ तकार, और खेतिहर मज़दूर सबको लूटता और दबाता था और इन...